एक दिन गुज़रते हुए....... काली सडकों पे भिखरी पतछड़ की निशानी फूल पत्तों से सजी कुदरत की कालीन पास में बहती हुई गंदी नाली और बधबू फेकती हुई गंध पे नाचती हुई मखियों के पार एक आँगन में उगती हुई एक लाल फूलों से भरा पेड़ और अंधेरों से ढके घर पे नन्ही मुन्नी की मोतियों से चमकती सुन्दर आँखें और वहीं उसी मोहल्ले में हांथो में सजाते अरमानों की लाल रंग से खिलते लष्मी के सपने और उसके बराबर के मोड़ पे नीले दरवाज़ों वाला घर में मास्टरनी और उनकी सहेली की तूफानी बातें और गरजती हंसी की कहीं ज़ोर एक हवा के झोकें से छोटी रानी भौंकने लगी और बेवजह हँसते हुए बच्चों के टोली के पीछे दौड़ लगायी की साथ साथ नीम के पेड़ पे सुस्ता रही सारी चिड़ियाँ फुर्र से पेड़ से चहकती हुई हवा के पीछे पीछे उड़ गयी..........
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